कर्बला चौक में बैठकर हर दिन कई समस्या को सुलझाते थे
पिता के हर सपना को पूरा करेंगे:राज
रांची: झारखंड की शान समाजसेवी सह अंजुमन इस्लामिया के पूर्व सचिव सह कर्बला चौक दुकानदार समिति के अध्यक्ष हाजी सरवर का निधन हो गया (इन्ना लीलाहे व इन्ना इलैहे राजीओंन)। मिट्टी मंज़िल 25 अप्रैल 2021 को बाद नमाज़ ज़ोहर रातू रोड क़ब्रिस्तान में नमाज़ जनाजा अदा की गई और वहीं सुपुर्द ए खाक किया गया। नमाज़ जनाज़ा जमाअत के साथी और मस्जिद क़ासिम के इमाम हाफिज असलम ने पढ़ाई। ज्ञात हो की हाजी सरवर को 2 दिन पूर्व लुजमोशन होने से कमज़ोरी आ गया। इस लिए वह हेल्पपोइंट हॉस्पिटल बरियातू में भर्ती हुए। तबियत में सुधार भी हुआ। अपने पुत्र राज को बोले हम ठीक है आप घर जाकर फ्रेश हो जाओ। राज घर पहुंचा उधर हाजी साहब का ऑक्सीजन लेवल कम होने लगा। और मगरिब के समय उन्होंने आखरी सांस ली। जैसे ही लोगो को पता चला कि हाजी सरवर का इंतेक़ाल हो गया तो कोई यक़ीन ही नही किया। कई लोगो ने उनके सबसे करीबी दोस्त हाजी माशूक़ को फोन किया, तो कई ने उनके पुत्र राज को फोन किया। जब जवाब मिला खबर सही है तो लोग बेचैन हो गए। जैसे ही जनजा घर पहुंचा लोग उनके घर की ओर चल दिये। सभी लोगो ने उनसे अपने अच्छे रिश्ते को बयान करने लगे। ज्यादातर लोगों ने कहा कि हाजी साहब का इख़लाक़ ही था कि हमलोग खिंचे चले आते थे। इनके दोस्त हाजी माशूक़ ने बताया कि हाजी सरवर दुसरो के दर्द को अपना दर्द समझते थे। हमेशा दुसरो के काम आते थे। उनकी यह कमी कभी पूरी नही की जा सकती है। पत्रकार आदिल रशीद ने कहा कि हाजी सरवर कर्बला चौक में बैठक कर कई समस्या को आसानी से हल कर देते थे। अल्लाह ने उन्हें इज्जत और दौलत दोनो से नवाजा था। हाजी सरवर अपने पीछे 1 बेटा शहाब राज, 2 बेटी, बीवी, भतीजा, समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गए। उनका पुत्र शहाब राज ने कहा कि आज हमारे सर से पिता का साया उठ गया। देर से घर पहुंचने पर प्यार से कहते थे बेटा जल्दी आ जाया करो। मेरी फिक्र करने वाला आज हमसे दूर हो गया।जनाज़ा में शामिल होने वालों में पत्रकार आदिल राशिद, अकिलुर्रह्मान, मौलाना हाजी सैयद तहजिबुल हसन रिज़वी, मुफ़्ती अब्दुल्लाह अज़हर, हाजी माशूक़, हाजी इम्तियाज, हाजी सफ्फु, पत्रकार सैयद आलम, हाजी तालिब, उमर अंसारी, मतलूब अंसारी, अनवर आलम, खालिद, चांद, गुड्डू, ताहा, बेलाल, पप्पू, मोज़म, आज़म अहमद, एजाज गद्दी, मो ज़ाहिद, हाजी मुख्तार, हाजी हलीम उद्दीन, समेत शहर और ग्रामीण के सैंकड़ो लोग थे।
आदिल रशीद