शहर क़ाज़ी, जमीयत उलेमा झारखंड के महासचिव हज़रत मौलाना अवुबकर क़ासमी का निधन
आदिल रशीद
रांची: शहर क़ाज़ी, जमीयत उलेमा झारखंड के महासचिव, कडरू मदरसा हुसैनिया के टीचर, बड़ी मस्जिद मरकज़ के ख़तीब दर्जनों एदारा के अध्यक्ष हजऱत मौलाना मोहम्मद अवुबकर क़ासमी का निधन होगया (इन्ना लीलाहे व इन्ना इलैहे राजीओंन)। मिट्टी मंज़िल 14 अप्रेल को बाद नमाज़ ज़ोहर मदरसा हुसैनिया कडरू में नमाज़ जनाजा अदा की गई और कडरू क़ब्रिस्तान में सुपुर्द ए खाक किया गया। नमाज़ जनाजा जमीयत उलेमा झारखंड के अध्यक्ष हजऱत मौलाना इसरारुलहक़ मजाहिरी ने पढ़ाई। ज्ञात हो की हजऱत मौलाना अबुबकर क़ासमी पिछले 2 दिन से बीमार थे। हल्का बुखार था। तबियत कुछ ज़्यादा ठीक नहीं लगने लगा तो मंगलवार को घर से अपने बेटा, बेटी और मुफ़्ती कमरे आलम के साथ हॉस्पिटल के लिए निकले। डॉक्टर ने उन्हें ऑक्सीजन लेने की सलाह दी। मगर पूरे शहर के कोई हॉस्पिटल में ऑक्सीजन सिलेंडर नही मिला और नही कोई जगह। मुुुफती कमरे आलम, हाफिज़ जहांगीर ने बरियातू के सैयद अनीस हैदर से बात किया कि हजऱत को सिलेंडर की जरूरत है। अनीस हैदर ने अपने घर बुलाकर ऑक्सीजन सिलेंडर का व्यवस्था किये। फिर वहां से आलम हॉस्पिटल ले जाया गया। वहाँ सिटी स्केन भी हुआ। सब जांच नॉरमल आया। फिर वहां अंजुमन अस्पताल के नजीब भाई से बात कर अंजुमन लाया गया। जिस पावर का सिलेंडर हजऱत को चाहिए था वह नहीं मिला। आखिरकार मंगलवार रात 11 बजे हजऱत मौलाना अबुबकर क़ासमी इस दुनिया को अलविदा कह गए। जैसे ही लोगो को पता चला कि हाजी मोहम्मद अबुबकर क़ासमी का इंतेक़ाल हो गया तो लोग यक़ीन ही नही किये। और मुफ़्ती कमरे आलम को फ़ोन किये। जब यह पता चला कि बात सही है तो लोग अश्कबार हो गए। जनजा जैसे ही घर पहुंचा तो लोग उनके घर की ओर चल दिये। सभी लोगो ने उनसे अपने अच्छे रिश्ते को बयान करने लगे। हुसन इख़लाक़ के धनी थे। अल्लाह ने उन्हें इल्म की दौलत तो दिया ही था साथ ही हुसन इख़लाक़ के भी धनी थे। जमीयत उलेमा से जुड़े रहें। 15 वर्ष से शहर काजी थे। बड़े बड़े मसले को आसानी से क़ुरआन व हदीस की रौशनी में हल कर देते थे। सेंकडो घरों को टूटने से बचाया हैं। समाजिक कार्यो में लड़का, लड़की के मामले में अपना पैसा लगाकर अपना वक़त लगा कर रिश्ता को टूटने से बचाते थे। मौलाना हमेशा कहते थे आदिल बाबू अल्लाह जिससे काम लेले। 35 वर्षो से मदरसा हुसैनिया और बड़ी मस्जिद मरकज़ में उन्होंने अपनी सेवाएं दी। जहाँ शिक्षा पर बहुत जोर देते थे। मौलाना मोहम्मद अबुबकर अपने पीछे 2 बेटा साकिब अबुबकर, अहलुल्लाह रागिब, 1 बेटी आलिया परवीन, बीवी समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गए। मौलाना के इंतेक़ाल के बाद चेहरा नूरानी हो गया। मानो जैसे सोते हुए मुस्कुरा रहे हो। जनाज़ा में शामिल होने वालों में पत्रकार आदिल राशिद, मुफ़्ती कमरे आलम, शाह उमेर, मौलाना मोहम्मद, कारी असद, मुफ़्ती सलमान क़ासमी, मौलाना ओबैदुल्लाह क़ासमी, मुफ़्ती अब्दुल्लाह अज़हर, मौलाना सैयद तहजिबुल हसन रिज़वी, क़ाज़ी उज़ैर, मौलाना असगर मिस्बाही, मुफ़्ती अनवर क़ासमी, मौलाना क़य्यूम, मुफ़्ती उज़ैर, मौलाना असजद, कारी अब्दुल हफ़ीज़, अक़ीलुर्रह्मान, सैयद नेहाल, सैयद अनीस हैदर, हाजी सरवर, हाजी माशूक़, अशरफ खान चुन्नू, हाफिज जहांगीर, शाहिद अय्यूबी, राजा अयूब खान, हाजी हलीम, अब्दुल मनान, सैफुलहक़, डॉ शाहबाज आलम, डॉ एम हसनैन, नजीब, नक़ीब, शाहिद टुकलु, शहज़ाद बबलू, हाजी इबरार, साजिद उमर, हाजी उमर, मो टिंकू, परवेज़ उमर, मौलाना तल्हा नदवी, तनवीर अहमद, नदीम खान, क़ारी जान मोहम्मद, कारी इलियास, कारी आबिद, कारी अखलद, कारी एहसान, कारी कलाम, हाफ़िज़ ताहिर, मोहम्मद सईद, समेत शहर और आप पास के सेकंडों लोग थे।