बड़े को अपने जैसा समझना एक्सीडेंट है: मौलाना नूरी

क़यामत तक अली के लाल की पहचान बाकी है….

 जिसके दिल मे मेरे मौला तेरी उल्फ़त होगी, उसकी ठोकर में ज़माने की हुकूमत होगी


 प्रोग्राम की अध्यक्षता मशहूर समाजसेवी, दर्जनों संस्था के सरपरस्त जनाब जावेद हुसैन ने की।

रांची: अल्लाह कुरआन पाक में सूरज की कसम खात हैं, क्योंकि सूरज हर इंसान को बल्कि हर चीज को फायदा पहुंचाता है। मगर जब सूरज डूब जाता है तो अंधेरा छा जाता है। उस वक़्त हर इंसान अपना काम करने से रुक जाता है। तो उस वक्त एक( रोशनी ) मोमबत्ती अपने को जलाकर सबको रौशनी(उजाला) देकर सब पर एहसान करती है। यानी सूरज(रौशनी) का क़र्जा सब पर है, मगर सूरज पर किसी का नही। उक्त बातें कश्मीर से आये हुए बतौर मुख्यातिथि हजरत मौलाना गुलाम रसूल नूरी ने कही। वह एक दिवसीय मजलिस गम को सम्बोधित कर रहे थे। मौलाना ने कहा कि इसी तरह जब ज़ुल्म व ज़ियादती की घटा का अंधेरा छा जाता है तो उस वक़्त शहीद अपने को मोमबत्ती (रौशनी) की तरह कुर्बान करके हर मज़लूम को रोशनी अता करता है, और ज़ालिम के अंधेरे को दूर करता है। चाहे वो मज़लूम मुस्लिम हो, हिन्दू हो, सिख हो, ईसाई हो, आदिवासी हो, पारसी हो चाहे वो कोई भी हो शहीद का एहसान सब पर होता है। यहीं कारण है शहीद आज़म हज़रत इमाम हुसैन की बारगाह में हर मज़हम व मिल्लत के लोग शोक वेक्त करता रहता है। इसलिए पूरे इंसान को हजरत इमाम हुसैन से जुड़कर मज़लूम की मदद के लिए ज़ालिम के खिलाफ आवाज़ उठाये। मौलाना ने कहा कि बड़े को अपने जैसा समझना ही एक्सीडेंट है। एक बच्चा मोटरसाइकिल से जा रहा है, उधर से गाड़ी आ रही है उसका दोनों लाइट जला हुआ है, और ये बच्चा कहता है कि वो मेरे जैसा है इसलिए में दोनों लाइट के बीच से निकल जाऊंगा। इसलिए बड़े को अपने जैसा समझना एक्सीडेंट है। मजलिस गम का आयोजन समाजसेवी जावेद हुसैन ने की। मजलिस का संचालन करते हुए यूपी से आये हुए फाखरी मेरठी ने कहा कि क़यामत तक अली के लाल(पुत्र) की पहचान बाक़ी है, ज़माना लाख दुश्मन है मगर ईमान बाक़ी है, जो सारी जिंदगी खाता रहा सुखी हुवी रोटी, उसी इंसान के बेटे का  दस्तरख्वान बाकी है। इज़न देते शहे अबरार तो फिर किया होता, जंग करता जो अलमदार तो फिर किया होता, खत(निशान) के उसपार क़दम रुक गए सबके वरना, कोई आजाता जो इसपार तो फिर किया होता। उसने खत(निशान) खींचा तो तलवार झुका कर खींचा, वो उठा लेता जो तलवार तो फिर किया होता। जिसे सुनकर मजमा या हुसैन की सदा से गूंज उठा। वहीं डॉ नायाब बलियावी ने जब पढ़ा कि मेरे मौला तूने बरपा कर दिया वो इन्क़लाब, जंग जीती जा रही है क़ैद में जाने के बाद। जिसके दिल मे मेरे मौला तेरी उल्फ़त होगी, उसकी ठोकर में ज़माने की हुकूमत होगी। वहीं मर्सियाख्वानी मोहसिन अली मासूमी, इरशाद हसन मासूमी, सोज़खानी काशिफ़ रज़ा व टीम, नोहाखानी  अंजुमने पँजातनी, अंजुमने अकब्रिया ने पढ़ी। पेशखानी हसन सरयावी, डॉ नायाब बलियावी ने पढ़ी। मजलिस मि शुरुआत हाफिज गुलरेज़ की तिलावते क़ुरआन पाक से हुई। प्रोग्राम की अध्यक्षता मशहूर समाजसेवी, दर्जनों संस्था के सरपरस्त जनाब जावेद हुसैन ने की। प्रोग्राम को कामयाब बनाने वालों में जावेद हुसैन और उनकी टीम ने अहम भूमिका निभाई।  मौके पर पैग़ाम इंसानियत के वाइस चेयरमैन सह कांग्रेसी लीडर सैयद हसनैन ज़ैदी, अली अब्बास, आमिर अली, जामिन अब्बास, शामिन अब्बास, सकीना जावेद, कासिम अहमद, कलीम अहमद, हैदर अब्बास, हसन सरियावी, अयान मिर्जा, अफरोज इमाम, मोहसिन रजा, आफाक हसन, औसाफ हैदर, मुज्तबा हुसैन, असद उल्लाह रिजवी, ऑन रिजवी, शाहिद वक्त, मोहम्मद अफरोज, अमान अली, तनवीर हुसैन, अमान खान, राणा हुसैन, अली हैदर रिजवी, सैयद तसलीम रजा नकवी, इम्तियाज आलम, अफरोज इमाम, तबारक हुसैन समेत सैंकड़ो लोग थे।