चिकित्सक ने महिला का कराया सुरक्षित प्रसव, जच्चा-बच्चा दोनों हैं स्वस्थ
- विशेष संवाददाता
रांची। राजधानी के बरियातू रोड स्थित फ्रेया अस्पताल में एक महिला के गर्भस्थ शिशु को जटिल आरएच विसंगति के खतरे से बचाते हुए उसका सुरक्षित प्रसव कराया गया।
इस संबंध में फ्रेया अस्पताल की चिकित्सक डॉ.तूलिका जोशी ने बुधवार को प्रेस वार्ता में बताया कि रक्त के विभिन्न प्रकार होते हैं। (एबी, ओ और एबी) इसके अलावा आरएच भी एक प्रकार होता है। 85 प्रतिशत लोग आरएच पॉजिटिव होते हैं, और 15 प्रतिशत लोगों में आरएच निगेटिव होता है। यदि माता आर एच निगेटिव और पिता आर एच पॉजिटिव हो, तो शिशु के भी आर एच पॉजिटिव होने की अधिकाधिक संभावना होती है। ऐसे में शिशु की लाल रक्त कोशिकाएं, नाल (प्लासेंटा) को पार कर के माता के खून में मिल सकती है।
माता का खून इन रक्त कोशिकाओं के प्रतिकूल एंटीबॉडी (प्रतिरोधक कोशिकाएँ) बनाता है। फिर ये एंटीबॉडी (प्रतिरोधक कोशिकाएं) वापस शिशु के रक्त से मिल जाती है और शिशु की लाल रक्त कोशिकाएं को नष्ट कर देती है। इससे शिशु में खून की भारी मात्रा में कमी हो जाती है और शिशु की गर्म में ही मृत्यु हो सकती है। इस समस्या से बचने के कुछ उपाय हैं, लेकिन शिशु के कम होते खून के स्तर को पूरा करना ही चिकित्सा का एक
तरीका है।
उन्होंने कहा कि गर्भस्थ शिशु को रक्तदान करना एक जटिल प्रक्रिया है। यह उच्च तकनीक कुशल और अनुभवी डॉक्टरों से ही संभव है। झारखंड, बिहार, उड़ीसा क्षेत्र का संभवत: पहला ऐसा सफल प्रयास रांची के बरियातू स्थित फ्रेया अस्पताल में किया गया।
यहां शहर की एक प्रसिद्ध महिला चिकित्सक द्वारा एक गर्भवती महिला को सुरक्षित प्रसव के लिए रेफर किया गया।
डॉ. तूलिका जोशी ने बताया कि उक्त गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे में विभिन्न प्रकार के अत्याधुनिक जांच के बाद पता चला कि गर्भस्थ शिशु में खून की कमी है। इसके बाद उसकी चिकित्सा शुरू की गई और अत्याधुनिक तकनीक के सहयोग से उसका सुरक्षित प्रसव कराने में चिकित्सक सफल रहे।
उन्होंने कहा कि फ्रेया अस्पताल शिशुओं, गर्भवती महिलाओं और जटिल जननांगों की समस्याओं के निदान में अपनी खास पहचान बना चुका है।
फ्रेया अस्पताल में गर्भस्थ शिशु चिकित्सा (डेंटल मेडिसिन) की विशेषज्ञा डॉ. तूलिका जोशी ने बताया कि मरीज को माता के आर एच निगेटिव ब्लड ग्रुप और पिता के आरएच पॉजिटिव ब्लड ग्रुप की वजह से तीन बार गर्भपात हो गया था। इस बार भी ऐसा ही हो रहा था और शिशु का हीमोग्लोबिन स्तर पांच के आस पास आ गया था। फ्रेया में डॉ. जोशी एवं इंट्रायूटेराइन ट्रांस्फ्यूजन विशेषज्ञा डॉ.अभि शाह (जो गुजरात से आयी थी) ने मिल कर गर्भ में ही शिशु को रक्तदान कराया। यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया द्वारा हुआ, जिसमें उच्च कोटी के अल्ट्रा साउन्ड निर्देशन की जरूरत पड़ती है। इस प्रक्रिया के बाद शिशु का रक्त स्तर सामान्य हो गया। मां एवं शिशु दोनों स्वस्थ हो गए। प्रसव का पूरा समय होने पर शिशु का ऑपरेशन द्वारा जन्म कराया गया।
शिशु को इसके बाद भी इस जटिलता के कारण जान का खतरा बना हुआ था। फ्रेया अस्पताल नियोनेटोलाॅजी आईसीयू में कुशल चिकित्सकों द्वारा इसका इलाज किया गया। अब स्वस्थ बच्चा और खुश माता
पिता घर जाने के लिए तैयार हैं। गर्भ में शिशु के उपचार (फेटल मेडिसिन) की सुविधा अभी तक सिर्फ सबसे
बड़े शहरों में ही उपलब्ध है।
उन्होंने बताया कि फ्रेया अस्पताल का यह कदम झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा जैसे क्षेत्रों में रह रहे जरूरतमंद मरीजों के लिए आशा की किरण है। इसके अलावा भी जन्म से पहले ही शिशु के उप(फेटल मेडिसिन एंड फेटल सर्जरी ) की कई बार जरूरत पड़ती है और इसमें कई संभावनाएं हैं। आने वाले दिनों में फ्रेया अस्पताल इस राह में मार्गदर्शक का कार्य करता रहेगा।