आरएएस तकनीक आधारित मछली पालन पर पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ

रोजगार सृजन और पलायन रोकने में सहायक साबित होगा आरएएस तकनीक : डॉ.एचएन द्विवेदी


  • विशेष संवाददाता

रांची। मत्स्य किसान प्रशिक्षण केन्द्र, शालीमार, धुर्वा में पांच दिवसीय रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) तकनीक आधारित मछली पालन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलवार को किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम के उदघाटन अवसर पर शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय भीमताल, उत्तराखंड के राजेश एम. वैज्ञानिक, डॉ. बीजू सैम कामाला जे. वैज्ञानिक के साथ-साथ डॉ. एचएन द्विवेदी, निदेशक मत्स्य, मनोज कुमार, संयुक्त मत्स्य निदेशक, अरूप चौधरी, जिला मत्स्य पदाधिकारी रांची, प्रदीप कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी, हजारीबाग, रौशन कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी, सरायकेला-खरसावां, प्रशान्त कुमार दीपक, मुख्य अनुदेशक, सीमा कुमार कुजूर, मधु लकड़ा, अलका कच्छप सहित मत्स्य किसान प्रशिक्षण केन्द्र के अन्य पदाधिकारी एवं कर्मी उपस्थित थे।

इस कार्यक्रम में विभिन्न जिलों से आये हुए करीब 135 मत्स्य कृषकों ने भाग लिया।
निदेशक मत्स्य, डॉ. एचएन द्विवेदी ने बताया कि आरएएस एक नवीनतम तकनीक है, जिसमें कम जगह में तथा कम पानी में अधिक से अधिक मछली का उत्पादन किया जा सकता है।

उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में तालाब में प्रति हेक्टेयर मछली के उत्पादन का आकलन न करते हुए प्रति घन मी. में मछली के उत्पादन का आकलन किया जा रहा है। तालाब में जहां प्रति घन मीटर में 0.3 किग्रा से 1 किग्रा मछली का उत्पादन होता है तथा केज कल्चर के माध्यम से 25 से 30 किग्रा मछली का उत्पादन होता है। वहीं, वैज्ञानिक तरीके से आरएएस विधि में मछली पालन करने से प्रति घन मीटर में 40 से 50 किग्रा मछली का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। अतः बढ़ती जनसंख्या तथा घटती खेती योग्य भूमि के कारण कम जगह में आरएएस विधि द्वारा अधिक से अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आरएएस तकनीक को अपनाने से किसानों को नए रोजगार के साधन मिलेंगे तथा पलायन दूर होगा। झारखंड में राज्य सरकार एवं भारत सरकार के द्वारा संचालित प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना अंतर्गत अनेक आरएएस का निर्माण किया जा रहा है। पीएमएमएसवाई के लाभुकों का पांच दिवसीय विशेष प्रशिक्षण का आयोजन किया जा रहा है। इस विधि में कम ऑक्सीजन में रहने वाले मत्स्य प्रजातियों का पालन किया जाता है तथा इस तकनीक को अपनाने से नीली क्रांति के क्षेत्र में एक नया आयाम जुड़ा है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना स्वरोजगार को बढ़ावा देती है इस योजना का मुख्य उद्देश्य मछली उत्पादन एवं उत्पादकता में गुणात्मक अभिवृद्धि, नवीनतम तकनीक की सहायता से मात्स्यिकी प्रबंधन आवश्यक आधारभूत संरचनाओं का विकास आधुनिकीकरण एवं सुदृढिकरण हेतु सहायता उपलब्ध कराया जाना है। इसका लाभ प्रत्येक मत्स्य कृषक ले सकते हैं।

इस अवसर मनोज कुमार संयुक्त मत्स्य निदेशक द्वारा आरएएस स्थापना हेतु साईट सेलेक्शन, सिविल निर्माण कार्य, सुरक्षा आदि ध्यान देने पर विशेष रूप से बल दिया। आरएएस विधि से मछली पालन करने से रोजगार के नए साधन मिलेगे तथा पलायन दूर होगें। जिस प्रकार झारखण्ड प्रदेश का नाम केज कल्चर में विख्यात है, उसी प्रकार आरएएस में भी झारखण्ड का नाम रोशन होगा।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के शुभारंभ के अवसर पर आईसीएआर (डीसीएफआर) के वैज्ञानिक डॉ. राजेश एम द्वारा बताया गया कि जहां एक ओर हमारी कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है, वैसी स्थिति में आरएएस विधि से मछली पालन करके अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है। उन्होने आरएएस में पानी की गुणवता पर विशेष ध्यान देने हेतु आवश्यक सुझाव दिये।
डॉ.बीजू सैम कामालाम जे. वैज्ञानिक ने भी आरएएस तकनीक के विभिन्न पहलुओं सहित मत्स्य आहार के अन्य प्रयोग के बारे में प्रकाश डाला। प्रशिक्षण कार्यक्रम में काफी संख्या में मत्स्य पालकों ने भाग लिया।