सेवानिवृत्त विद्युतकर्मी अमलेन्दु शरण निलंबन अवधि के पुनरीक्षित वेतनमान, पेंशन व उपादान के लाभ से हैं वंचित

विभागीय अधिकारियों से लगा रहे गुहार, नहीं मिल रहा न्याय


  • विशेष संवाददाता

रांची। विद्युत विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद विपत्र लिपिक अमलेन्दु शरण निलंबन मुक्त हो जाने के बाद से निलंबन अवधि का पुनरीक्षित वेतनमान, पेंशन व उपादान राशि के भुगतान के लिए विगत कई वर्षों से ऊर्जा विभाग के दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं, विभागीय अधिकारियों से गुहार लगा रहे हैं। लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है। वह अपना वाजिब हक पाने के लिए संघर्षरत हैं। लेकिन विभागीय अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहा।
श्री शरण के मुताबिक सेवानिवृत्ति के बाद उनके निलम्बन अवधि का वेतन निर्धारण विपत्र में विभागीय अधिकारियों द्वारा जानबूझकर गड़बड़ी की गई है, नतीजतन उन्हें निलंबन अवधि का पुनरीक्षित वेतनमान सहित अन्य मद में राशि का निर्धारण नहीं हो सका है । इसकी वजह से वह उक्त लाभ से वंचित है ।

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क्या है मामला ?

अमलेन्दु शरण झारखंड ऊर्जा विकास निगम से विपत्र लिपिक के पद पर मई 2010 में सेवानिवृत हुए ।
पूर्व में वे बिहार राज्य विद्युत बोर्ड में कार्यरत थे। अलग राज्य गठन होने के बाद कैडर विभाजन के तहत मई 2003 में झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड में उन्होंने विपत्र लिपिक के पद पर योगदान दिया। उनकी प्रतिनियुक्ति तत्कालीन बिहार राज्य विद्युत बोर्ड में जनवरी 1996 को विद्युत आपूर्ति अवर प्रमंडल, करणडीह (जमशेदपुर) में विपत्र लिपिक के पद पर हुई थी ।
इस दौरान 22 जुलाई,1996 को विद्युत उपभोक्ताओं से वसूली गई कुल राशि 10614.19 रुपए (दस हजार छह सौ चौदह रुपए उन्नीस पैसे)गबन का आरोप उनके ऊपर लगाया गया। अंकेक्षण के दौरान भी उक्त राशि के गबन की पुष्टि करते हुए तत्कालीन बिहार राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा उन्हें निलंबित कर दिया गया। अपने ऊपर लगे आरोपों को गलत बताते हुए उन्होंने इसके विरूद्ध तत्कालीन संयुक्त सचिव स्वप्न मुखर्जी को रोकड़ बही की छायाप्रति संलग्न करते हुए आवेदन दिया और मामले की जांच कराने की मांग की। श्री मुखर्जी ने पत्रांक-681, 15 मार्च 1999 द्वारा विद्युत कार्यपालक अभियंता, विद्युत आपूर्ति प्रमंडल, जमशेदपुर एवं सहायक विद्युत अभियंता, अवर प्रमंडल, करणडीह, जमशेदपुर को आवेदन संलग्न करते हुए जांच प्रतिवेदन मांगा । इसके प्रत्युत्तर में तत्कालीन विद्युत कार्यपालक अभियंता, विद्युत आपूर्ति प्रमंडल, जमशेदपुर ने अपने पत्रांक- 1633, 28 जून,1999 द्वारा जांच प्रतिवेदन भी भेज दिया। जिसमें उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया कि उनके कार्यालय में किसी प्रकार की राशि का कोई गबन नहीं किया गया है। अंकेक्षक ने सही ढंग से जांच नहीं की, जिससे अंकेक्षक को गबन का भ्रम हुआ। इस बीच श्री शरण के विरूद्ध विभागीय कार्यवाही भी जारी थी। लेकिन जांच पदाधिकारी के समक्ष विद्युत कार्यपालक अभियंता द्वारा समर्पित प्रतिवेदन को प्रस्तुत ही नहीं किया गया और उन्हें दंडित करते हुए उनके वेतन से उक्त राशि 10614.19 रूपये कटौती करने का निर्देश दे दिया गया। चूंकि जांच प्रतिवेदन में रोकड़पाल एवं
सहायक विद्युत अभियंता पर गंभीर आरोप लगाया गया था। श्री शरण को निलम्बन मुक्त कर कार्यालय आदेश संख्या 166, दिनांक 11. 01.02 को मगध विद्युत आपूर्ति क्षेत्र गया में पदस्थापित कर दिया। लेकिन उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही जारी रही।
तत्कालीन विभागीय संयुक्त सचिव मोहम्मद ए हक द्वारा 24 अक्टूबर 2002 को पत्रांक-4319 के माध्यम से उन्हें दंडित किया गया। साथ ही उनके वेतन से 10614.19 रूपये राशि की कटौती का आदेश भी दे दिया गया। इसके बाद कैडर विभाजन में मार्च 2003 में झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड, मुख्यालय में विपत्र लिपिक के पद पर उन्हें पदस्थापित किया गया। झारखंड आने के बाद उन्होंने झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के चेयरमैन को पुनः उक्त मामले की जांच करने के लिए आवेदन दिया। जांच के उपरांत कार्यालय आदेश संख्या-345 दिनांक- 19.02.2009 द्वारा तत्कालीन कार्मिक निदेशक, वाईपी रजक ने उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त करने संबंधी आदेश जारी किया । कार्यालय आदेश संख्या-345 दिनांक-19.02.09 द्वारा आरोपमुक्त करने के पश्चात श्री शरण ने उच्च न्यायालय में लंबित मुकदमा वापस ले लिया। इसके बाद कार्यालय आदेश सं-231, 24 जून 2010 को झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के संयुक्त सचिव अमरनाथ मिश्रा द्वारा यह आदेश जारी किया गया कि इसे क्यों नहीं रद्द कर दिया जाए। श्री मिश्रा ने अपने आदेश में इस बात का जिक्र किया कि श्री शरण को आरोप मुक्त करने से संबंधित आदेश बगैर सक्षम अपीलीय पदाधिकारी के निर्गत किया गया है। इसके बाद कार्यालय संख्या-667, 28.05.2010 द्वारा उक्त आरोप मुक्ति का आदेश पुनः रद्द कर दिया गया। जवाब में अमलेन्दु शरण ने विभाग को आवेदन दिया।

विभागीय उपेक्षा के शिकार श्री शरण ने उक्त आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में वर्ष 2011 में दूसरी बार याचिका दायर की, जिसका फैसला 10 जुलाई 2019 को आया ।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य विद्युत बोर्ड ने अपनी ही जांच रिपोर्ट को नकारकर मामले में निर्णय लिया है। इसलिए पूर्व के आदेश व जांच प्रतिवेदनों के आधार पर ही निर्णय लिया जाए। हाईकोर्ट के फैसले से स्पष्ट हो गया कि श्री शरण कहीं से भी दोषी नहीं है।

हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर झारखंड राज्य ऊर्जा विकास निगम के कार्यालय आदेश संख्या-734 दिनांक 31.07.2020 को श्री शरण पर लगाए गए तमाम आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें दिए गए दंड को निरस्त करने का निर्णय लिया गया।
झारखंड राज्य ऊर्जा विकास निगम (मानव संसाधन) के डिप्टी जीएम अशोक कुमार सिन्हा द्वारा 31.07.2020 को इससे संबंधित पत्र निर्गत किया गया।
तबसे अमलेन्दु शरण विभागीय अधिकारियों से गुहार लगा रहे है कि निलंबन अवधि का पुनरीक्षित वेतनमान, पेंशन और उपादान राशि निर्धारण कर उन्हें पुनरीक्षित दर पर एरियर सहित अन्य भुगतान किया जाए, लेकिन इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। श्री शरण ने दिनांक- 08.08.2019,02.12.2019 और 15.06.2022 को इससे संबंधित आवेदन भी विभाग को दिया, जो विभागीय उपेक्षा की भेंट चढ़ गई।