हूल दिवस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री ने सिदो-कान्हू को दी श्रद्धांजलि

आजादी के लिए आदिवासी समुदाय का बलिदान अविस्मरणीय : सुबोधकांत सहाय

विशेष संवाददाता

रांची। देश को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए आदिवासी समुदाय के वीर सपूतों का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंकने वाले सिदो-कान्हू,चांद-भैरव और फूलो-झानों सहित संताल क्षेत्र के अन्य वीर सपूतों का अनवरत संघर्ष ब्रिटिश शासन को देश से उखाड़ फेंकने में सफल रहा।
उक्त बातें पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने हूल दिवस के मौके पर गुरुवार को राजधानी स्थित सिदो-कान्हू की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित करने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कही।
श्री सहाय ने कहा कि अमर शहीद सिदो-कान्हू ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ वर्ष 1855 में हूल क्रांति का आगाज किया था। संताल विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी शासकों ने एंड़ी-चोटी एक कर दिया। आंदोलन कुचलने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने काफी सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया था। इसके बावजूद संताल सेना ने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। बंदूक की गोलियों और तोप के गोलों का सामना करते रहे, बलिदान होते रहे, लेकिन हार नहीं मानी। सिदो-कान्हू हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। लेकिन अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं की।
श्री सहाय ने कहा कि देश के लिए संताल विद्रोह के जनक ऐसे वीर सपूतों का बलिदान अविस्मरणीय है। उन्होंने वीर शहीदों के सपनों का समृद्ध और सशक्त झारखंड बनाने के लिए युवाओं से सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने की अपील की। हूल दिवस पर उन्होंने संताल क्षेत्र के तमाम वीर शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर कांग्रेस नेता सुरेंद्र सिंह, राजन वर्मा, योगेंद्र सिंह बेनी, विनय सिन्हा दीपू, दीपक प्रसाद, अरुण मिश्रा ‘पप्पू’ सहित काफी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता मौजूद थे।