खानाए काबा में 13 रजब को पैदा होने और 19 रमज़ान को मस्जिदे कूफा में दहशत गर्दी हमले में जख्मी हो कर 21 रमज़ान को जामें शहादत नोश करने वाले अली (अ स)
इस ज़मीन पर 63 साल की आदिलाना ज़िंदगी गुज़ार कर दुनिया से चले गए।अली(अ स) की ज़रूरत इंसानियत को कल भी थी आज भी है और हमेशा ही रहेगी दुनिया में शातिराना और ज़ालिमाना सियासत करने वालों से अली अपनी सारी ज़िन्दगी बर सरे पैकार रहे यही वजह है कि कल के सियासत दानों और जालिमों को जिस तरह अली का वजूद खटकता था उसी तरह आज के शातिराना सियासत करने वाले जालिमों को सीरते अली और जिक्रे अली बयान करना बर्दाश्त नहीं है। अली हमेशा अदल, इंसाफ,सखावत इल्म,शुजात सब्र,हिक्मत, अजमते बशरी और हुकूके इंसानी के अलंबरदार बने रहे यही वजह थी कि हमेशा शातिराना और ज़ालिमाना सियासत करने वालों के मकरूह रूखसारो पर अली की अजमतो के तमाचे बरसते रहेंगे।अली अपनी सारी ज़िन्दगी एक अल्लाह की इबादत और खिदमते ख्लक का दर्स अपनी सीरत और अपने किरदार से देते रहे। आप ने अल्लाह के मखलूक की भूख और प्यास दूर करने के लिए फकत ज़मीने ही आबाद नहीं किए कुएं ही नहीं खोदे शाह राहों पर खजूर के दरखत ही नहीं लगाए बल्कि रात की तन्हाइयों में अपने कंधे पर रोटियों का गठठर रख कर अल्लाह की मखलूक तक पहुंचाते थे और आप को ये अमल बहुत पसंद था।अली कभी भूखे मुसलमानों के मोहल्ले में दिखाई देते तो कभी ईसाइयों और यहूदियों के, वोह अल्लाह के बन्दों के साथ अदल करने उनकी भूख मिटाने और उनकी ज़रूरतें पूरा करने में कभी रंग,नस्ल,या मजहब का फर्क नहीं करते थे।अली अल्लाह के बन्दों का दुख अपने सीने में लिए हुए रात की तन्हाइयों में मुसल्ले पर आंसू बहाते और अपनी रीशे मुबारक अपने हाथो में पकड़े हुए रो रो कर कहते थे ए दुनिया तू मेरे गैर को धोखा दे तू अली को धोखा नहीं दे सकती। यतीमों का दरवाज़ा खटखटा कर और उन्हें आवाज़ दे कर कहते थे आओ बच्चों मै तुम्हारे लिए रोटियां ले कर आया हूं आओ और मेरी गोद में बैठ कर रोटियां खा लो यह थी बाप की तरह दी जाने वाली वह शफ़्क़त जो अली ने यातीमों को अता की। अली फकत ह्यूमन राइट्स का ही नहीं एनीमल राइट्स का भी पूरा ख्याल रखते थे।
आप का खुला हुआ एलान था कि ऊंटनी का दूध इतना मत दुह लेना कि उसका बच्चा ही भूखा रह जाए, जानवरों के नाखून काट दिया करो ताकि उन्हे चलने में कोई तकलीफ नहीं हो कमजोर और तेज़ रफ़्तार जानवरों को एक ही स्पीड से मत हांकना कहीं ऐसा ना हो कि कमजोर जानवर को तकलीफ हो जाए, ऐसी राहों से जानवरों के साथ मत गुजरना जहां जानवरों के चारे पानी का इंतजाम ना हो।आप पेड़ पौधों का भी बहुत ख्याल रखते थे,आप मदीने से खजूर की गुठलियों को ले कर गैर आबाद इलाके में जा कर प्लान टेशन करते बाग़ लगाते कुएं खोदते और अल्लाह की राह में वकफ कर देते ताकि मुसाफिरों और ज़रूरत मंदो की भूख प्यास मिट सके और तपते सहरा में पेड़ के नीचे बैठ कर आराम भी कर सकें। आप फरमाते थे खबरदार बे वजह पेड़ से एक पत्ता भी मत तोड़ लेना। अली बड़े से बड़े जालिमों के मुकाबले में तलवार ले कर उतार आते थे और कहते थे कि मुझको इस बात की परवाह नहीं है की मौत मुझ पर आ पड़े या मै मौत पर जा पड़ूं।
दूसरों का हक़ मार कर दस्तरखवान सजाने वालों को आप देखते तो फ़ौरन कह देते,.. मैंने किसी के पास वाफिर नेमतें नहीं देखीं जब तक उसके पहलू में कोई हक़ जाए न किया गया हो। किसी फकीर को आप भूखा देखते तो साफ साफ कह देते…
अगर कोई फकीर भूखा रहता है तो इस लिए कि उसका हक मार लिया गया है। आप अक्सर फरमाते थे.. दूसरों के लिए भी वही पसंद करो जो अपने लिए पसंद करते हो। आप यह भी फरमाते थे.. जिस तरह हक़ से कम देना ज़ुल्म है उसी तरह हक़ से ज़्यादा देना भी ज़ुल्म है।इंसानियत हमेशा अली तक पहुंचने का रास्ता ढूंढती रहेगी अली दुनिया की बड़ी से बड़ी ज़ालिम ताकत को हकीर समझते थे मगर मजलूमों की फरियाद सुन कर कांपने लगते थे और कहते थे.मेरी नजर में ज़ालिम अपनी तमाम ताकतों के साथ कमज़ोर है और मजलूम तमाम कमजोरियों के बावजूद ताकत वर है। अली ज़ालिम हुकमुरानों की हुकूमतों के मुकाबले में अपनी फटी हुई जूतियों की कीमत को ज़्यादा समझते थे।अली की निगाह में इंसानी जानों की इतनी कद्रो कीमत थी के आप अपने साथियों से कहते थे अगर दुश्मन भागने लगे तो उसका पीछा कभी मत करना अगर तलवार रख दे तो वोह तुम्हारा भाई है खबरदार दुश्मन की इमलाक और उसके बीवी बच्चों को हाथ ना लगाना।
यही वजह है कि अली की तलवार से कभी किसी बे गुनाह को खराश भी नहीं लगी।
चार साल के दौरे इक्तेदार में गरीबों तक रोटियों का गट्ठर पहुंचाने वाले अली का कांधा ही जख्मी नहीं था अली का सारा वजूद रसूल की उम्मत ने ज़ख्मी कर दिया था और फिर काबे में पैदा होने वाले अली को मस्जिद में एन नमाज़ की हालत में ज़ख्मी कर दिया गया जामे शहादत नोश करने से पहले अली ने अपने कातिल की मुष्कें ढीली करवा दी और अपने हाथ से अपने कातिल को शर्बत का गिलास दे कर उसकी प्यास बुझा दी इस तरह से आपने एक कैदी के इस्लाम में क्या बेसिक राइट्स हैं ये समझया
ये था अली का मुख्तसर सा तारूफ अली का किरदार आलमे इंसानियत में एक ऐसा किरदार था जिसकी वजह से मजहब की दीवारें गिरा कर एक हक़ परस्त ईसाई जार्ज जुर दाक चीख उठा और उसने यह कह दिया अली को उनके शिद्दत ए अदल की वजह से शहीद कर दिया गया.