रांची: झारखंड के मक़बूल इस्लामिक स्कॉलर हजऱत मौलाना सैयद मूसवी रज़ा ने यौम शहादत इमाम अली नक़ी के मजलिस को सम्बोधित करते हुए कहा कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत 3 रजब सन 254 हिजरी में इराक़ के शहर सामरा में हुई।
आप का नाम अली, लक़ब नक़ी और हादी है, आप के वालिद इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम और वालिदा हज़रत समाना (स.अ) थीं,आप ने भी अपने वालिद की तरह बहुत कम उम्र में इमामत की ज़िम्मेदारी को संभाला, चूंकि इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के कम उम्र में इमाम बनने पर लोग अपने सवाल का जवाब हासिल कर के संतुष्ट हो चुके थे इसलिए आप के कम उम्र में इमाम बनने पर किसी ने कोई सवाल नहीं किया।
आपके दौर के ख़ुलफ़ा
आप ने अपनी 33 साल की इमामत के दौरान 6 अब्बासी ख़ुलफ़ा के दौर और उनके ज़ुल्म का सामना किया और इन में केवल मुन्तसिर अब्बासी ही ऐसा था जिसने अपने बाप मुतवक्किल के बाद अपने रवैये को उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ की तरह थोड़ा नर्म ज़ाहिर किया लेकिन मुन्तसिर की हुकूमत केवल 6 महीने तक ही चल सकी और उसके बाद मुस्तईन ने फिर अपने बुज़ुर्गों की सीरत पर अमल करते हुए लोगों ख़ास कर अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के चाहने वालों पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ने शुरू कर दिए।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत में हुकूमत की तरफ़ से अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के शियों पर बहुत ज़ुल्म हुआ, जिस की वजह से हुकूमत के ख़िलाफ़ कई बार लोगों ने आवाज़ उठाई लेकिन इमाम ने तक़ैया करते हुए किसी भी आवाज़ का समर्थन नहीं किया, क्योंकि हुकूमत यही चाह रही थी कि इमाम भी इन लोगों का साथ दें ताकि उन लोगों के साथ इमाम को भी शहीद किया जा सके।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत के दौरान बनी अब्बास के इन 6 ख़ुलफ़ा में से सबसे ज़ियादा अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से दुश्मनी रखने वाला मुतवक्किल था, इस इंसानियत के दुश्मन ने लगभग 15 साल हुकूमत की और दूसरे सभी हाकिमों से ज़ियादा दसवें इमाम को तकलीफ़ देता रहा, मुतवक्किल ने 233 हिजरी में अपने जासूसों की मुख़बिरी के बाद इमाम को मदीने से सामरा बुलवा लिया और फिर इमाम ने लगभग 20 साल यानी अपनी शहादत तक सामरा ही में अब्बासी हुकूमत के ज़ुल्म को सहन करते हुए ज़िंदगी गुज़ारी।
दुश्मन की साज़िशों से मुक़ाबला
ज़ाहिर है इमाम के कांधों पर पूरी उम्मत की ज़िम्मेदारी होती है, उम्मत के मामलों को कैसे भी हालात में हल करना और उन की ज़रूरतों को पूरा करना इमाम के अहम कामों में से होता है, इमाम अली अलैहिस्सलाम ने हुकूमत के अत्याचारों के बावजूद अपने मिशन को जारी रखा और अपने मिशन में हालात के हिसाब से और समय की ज़रूरत के अनुसार लोगों तक दीनी ज़रूरत पहुंचाने के लिए जिस रास्ते की ज़रूरत हुई उसे अपनाया, इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम भी उसी सिलसिले की एक कड़ी हैं जिन्होंने समय और मुसलमानों दोनों की ज़रूरत को सामने रखते हुए हुकूमत की हर साज़िश को नाकाम किया और उनके ज़ुल्म को दुनिया के सामने ज़ाहिर किया।
अब्बासी हुकूमत को किसी भी तरह का समर्थन नहीं
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम किसी भी मौक़े को हाथ से नहीं जाने देते थे, आप जैसे ही मौक़ा मिलता था हुकूमत के ज़ुल्म और हाकिम का नाहक़ सत्ता पर क़ब्ज़ा करने जैसे मामलों को लोगों को सामने ज़ाहिर करते थे और लोगों को हुकूमत का किसी भी काम में साथ देने और उनके साथ काम करने को मना करते थे, हालांकि सातवें इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने से इमामों ने कुछ ख़ास लोगों को हुकूमत की ओर से दिए जाने वाले पद को क़ुबूल करने की अनुमति दी थी और इमामों ने ऐसा केवल इसलिए किया ताकि वह हुकूमत के पदों पर रहते हुए मुसलमानों की मदद कर सकें उनकी ज़रूरतों को सरकारी ख़ज़ाने जो आम लोगों का हक़ है वहां से पूरा कर सकें।
वकालत की शुरूआत
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब आप के लिए अपने शियों से मुलाक़ात करना बहुत कठिन हो गया था, इसीलिए आप ने उनकी समस्याओं को हल करने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने और उनको सवालों का जवाब देने के लिए वकालत का रास्ता चुना, यानी आप के बिल्कुल क़रीबी लोग अपनी वेशभूषा बदलकर लोगों से मिलते और उनकी समस्याओं, ज़रूरतों और सवालों को उनसे लेकर इमाम अलैहिस्सलाम तक पहुंचाते और फिर इमाम से जवाब लेकर शियों तक पहुंचाते, इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम अपने इस काम से वकालत के मामले को शियों के दिमाग़ में डालना चाहते थे ताकि आने वाले समय में जब इमाम महदी अलैहिस्सलाम ग़ैबत में रहकर लोगों की समस्याओं, सवालों और ज़रूरतों को अपने वकीलों (नाएब) द्वारा हल करें तो लोगों के लिए कोई नई चीज़ न हो।