रांची: मजहब इस्लाम मे फ़र्ज़(अनिवार्य) के बाद अगर किसी चीज का मकाम है तो वह सुन्नत है। सुन्नत ए नबी पर अमल करना चाहिए। एक अमल अक़ीक़ा है, अक़ीक़ा करने से लोगों की बलाए( परेशानी) दूर होती है। उक्त बातें हाजी मौलाना सैयद तहजिबुल हसन रिज़वी ने कही। वह रविवार को सैयद समर अली के द्वारा मजलिस जिक्र रसूल को सम्बोधित कर रहे थे। मौलाना ने कहा कि मुसलमानों को अपने आमाल(अच्छा काम) के जरिए यह साबित करना चाहिए के वह नफ़्स को इस तरह काबू में रखे कि अल्लाह को पसंद आए। वही शायर चन्दन स नेहाल ने जब पढा की अब्बास की महफ़िल में खुद बहने लगा आंसू, गाज़ी का क़सीदा है नोहा है सकीना का। लोग झूम उठे, या अली के अदाओ से महिफल गूंज उठी। वही जब मौलाना सैयद हैदर अब्बास ने पढ़ा के यह चौदह हैं तो इलाही निजाम जिंदा है, इन्हीं के नाम से खालिक का नाम जिंदा है। तो ऋषि बनारसी ने पढ़ा के जो रौजाये शाहे उमम चूमते हैं, तो उनका फरिश्ते कदम चूमते हैं,दुआ उनकी मांओं को देती है जहरा,जो बच्चे अदब से आलम चुनते हैं। वहीं मौलाना इलियास हुसैन ने सदका(दान) पर जोर देते हुए कहा कि सदका, खैरात का दूसरा नाम है। सदका देने से परेशानी दूर होती है और गरीब कि मदद भी होती है। इस मौके पर मौलाना डॉक्टर शमीम हैदर, हाजी इकबाल हुसैन, यादगार नकवी, अफरोज हैदरी, हाजी, जैनुल हक, इकबाल फातमी, अशरफ हुसैन, डॉक्टर सफदर रिजवी ,फैयाज हुसैन, सैयद जफर अली, सय्यद फैयाज अली, सैयद खुर्शीद अली, सैयद काजिम रजा, शाहबाज हुसैन, सैयद सादिक रजा, सैयद ताबिश रज़ा, अता इमाम रिज़वी, नेहाल हुसैन सरयावी समेत कई लोग थे।