झारखंड में उर्दू भाषा बेतवज्जही का शिकार है। राज्य गठन के बाद से अब तक उर्दू भाषा के साथ सौतेला रवैया अपनाया जाता रहा है । अभिभाजित बिहार में प्राप्त संवैधानिक अधिकार से उर्दू भाषा अब तक वंचित है । राज्य की अब तक की किसी भी सरकार ने उर्दू भाषा के विकास के प्रति गंभीर नहीं रही है । जबकि राज्य गठन के साथ ही बिहार री ऑर्गेनाइजेशन एक्ट के तहत बिहार उर्दू एकेडमी के तर्ज पर झारखंड उर्दू एकेडमी का गठन हो जाना चाहिए था लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका और न ही इस पर किसी भी सरकार द्वारा गंभीरता पूर्वक विचार विमर्श किया गया । प्रदेश की रघुवर दास सरकार कार्यकाल में राज्य अल्पसंख्यक आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष कमाल खान के प्रयास से कई भाषाओं पर आधारित लैंग्वेज एकेडमी बनाने का प्रस्ताव लाया गया था इसकी घोषणा स्वयं तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने धुर्वा स्थित मछली घर में आयोजित भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के कार्यकर्ता सम्मेलन की थी लेकिन इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका । हालांकि उर्दू साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों के अनुसार लैंग्वेज एकेडमी के गठन से उर्दू भाषा का विकास अपेक्षाकृत नहीं हो सकता था साथ ही उनका मानना था की सरकार के इस फैसले से बिहार री ऑर्गेनाइजेशन एक्ट की भी अवहेलना थी । गौरतलब है की उर्दू एकेडमी से वंचित होने से राज्य के उर्दू लेखकों, साहित्यकारों और शायरों की किताबों, पत्र पत्रिकाओं का न तो सही ढंग से लोकार्पण हो पा रहा है और न ही उनकी हौसला अफजाई हो पा रही है । जबकि देश के अन्य राज्यों में उर्दू एकेडमी के द्वारा उर्दू साहित्यकारों और शायरों को उनकी रचनाओं , पत्र पत्रिकाओं के लिए प्रत्येक वर्ष सम्मानित किए जाने की खबरें हमें देखने और सुनने को मिलती हैं ।
बहरहाल लैंग्वेज एकेडमी गठन से संबंधित रघुवर दास सरकार के इस निर्णय पर अमल नहीं हो सका ।
हालांकि राज्य गठन के बाद से ही कई सामाजिक और राजनैतिक संगठन जैसे अंजुमन तरक्की उर्दू झारखंड , झारखंड तंजीम , झारखंड छात्र संघ , ऑल मुस्लिम यूथ एसोसिएशन आदि संगठनों के अलावा लगभग तमाम राजनैतिक दलों के अल्पसंख्यक मोर्चा द्वारा उर्दू भाषा के विकास , उर्दू एकेडमी के गठन , उर्दू को दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा दिए जाने की मांग लगातार की जाती रही है । इन संगठनों के लंबे जद्दोजेहद के बाद वर्ष 2008 में मधु कोड़ा सरकार द्वारा उर्दू को राज्य के दूसरे सरकारी भाषा का दर्जा प्रदान करने की पहल ज़रूर की गई लेकिन इस भाषा का सरकारी तौर पर अब तक क्रियान्वयन नहीं हो सका । विश्वस्त सूत्रों की माने तो इस संबंध में सरकारी आदेश भी निर्गत किए गए लेकिन ये आदेश डस्ट बीन में डाल दिए गए । वहीं उर्दू स्कूलों में उर्दू शिक्षकों की भारी कमी को लेकर आवाज़ उठाई गई । प्राइमरी से लेकर पीजी स्तर तक माकूल तादाद में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ती की मांग की गई लेकिन किसी भी सरकार ने इस विषय पर गंभीर रवैया नहीं अपनाई । चिंताजनक पहलू तो यह है की अखंड बिहार के समय में झारखंड के क्षेत्रों के विद्यालयों में 4401 प्राइमरी उर्दू शिक्षकों की नियुक्ती से संबंधित सरकारी मंजूरी पर भी काफी राजनीति की गई । इससे संबंधित प्रस्ताव को कई बार जेपीसीसी से मानव संसाधन विभाग को लौटाया गया । कई बार विज्ञापन निकाले गए फिर झारखंड अधिविध परिषद् द्वारा परीक्षा आयोजित किए गए । अपेक्षाकृत परिणाम न आने पर हाई कोर्ट का सहारा लेना पड़ा । हाई कोर्ट के आदेशानुसार दोबारा परीक्षा का आयोजन किया गया । बावजूद इसके पूर्ण संख्यानुसार प्राइमरी उर्दू शिक्षकों की नियुक्ती नहीं की जा सकी । आज उर्दू विद्यालय की हालत अत्यंत दयनीय है । उर्दू शिक्षकों और उर्दू किताबों की कमी के कारण विद्यार्थी उर्दू भाषा से दूर होते जा रहे हैं और हिंदी पढ़ने पर मजबूर हो गए हैं वहीं कई उर्दू स्कूलों को हिंदी विद्यालयों में बदल दिए गए हैं ।
ऐसे में राज्य में उर्दू भाषा के हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है ।
इन तमाम मायूसी की खबरों के बावजूद उर्दू भाषा के प्रेमियों के लिए अच्छी ख़बर भी है की राज्य से विशेष कर रांची से निकलने वाले उर्दू दैनिक अख़बार की संख्या में बढ़ोतरी अवश्य देखने को मिली है । बुद्धिजीवी वर्ग आर्थिक लाभ प्राप्त करने की इच्छा उर्दू अख़बार की संख्या में बढ़ोतरी को बड़ी वजह मानते हैं वहीं कुछ लोग उर्दू सहाफत के प्रति नई नस्ल के युवकों की चाहत को भी इसका कारण मानते हैं । उनका मानना है की सामाजिक कुरीतियों को लगाम लगाने,सामाजिक सौहार्द के रिश्तों को मज़बूत बनाने, अल्पसंख्यक हितों से संबंधित खबरों की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने , धार्मिक जानकारी जैसे मदरसों और मस्जिदों , दरगाहों , खानकाहों से संबंधित जानकारी प्राप्त करने , राजनैतिक और सामाजिक रूप से कार्य करने के प्रति नई नस्ल के युवकों को प्रेरित करने जैसे मामलों में उर्दू अख़बार का अहम रोल रहता है बावजूद इसके उर्दू अख़बार के सर्कुलेशन में बहुत अधिक बढ़ोतरी देखने को नहीं मिलती है । एक ओर जहां सर्कुलेशन की कमी के कारण अख़बार मालिकों को बहुत अधिक आर्थिक लाभ नहीं होता है वहीं सरकारी स्तर पर विज्ञापन की कमी भी उर्दू अख़बार और उनके मालिकों के स्तर की बेहतरी में बाधक हैं । ज़ाहिर है इससे उर्दू सहाफत भी प्रभावित हो रहा है । ऐसे में ” जश्न उर्दू सहाफत दो सौ साल ” के आयोजन से राज्य के उर्दू प्रेमियों और उर्दू के विकास के लिए आवाज़ उठाने वालों और उर्दू सहाफियों में नई ऊर्जा परवान चढ़ी है । हम इसके लिए रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री संजय मिश्रा सर और सचिव जनाब जावेद अख्तर साहब समेत सुशील कुमार मंटू जी , अभिषेक जी, परवेज़ कुरैशी साहब व प्रेस क्लब के उन तमाम लोगों का दिल से शुक्रिया अदा करते हैं जिन्होंने इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के आयोजन में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है । रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष श्री संजय मिश्रा जी उर्दू दोस्त के रूप में एक मसीहा के तौर पर प्रकट हुए हैं । उन्होंने न सिर्फ इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का सफल आयोजन किया बल्कि आने वाले दिनों में जश्न उर्दू सहाफत से संबंधित राष्ट्रीय स्तर के तीन दिवसीय कार्यक्रम के आयोजन की घोषणा की है इतना ही नहीं उन्होंने युद्ध स्तर पर उर्दू के विकास के लिए जागरूकता अभियान चलाने के प्रति अपना दृढ़ संकल्प व्यक्त किया है । उन्होंने स्पष्ट किया है की संभवतः प्रभात ख़बर के बैनर तले वो गली गली मुहल्ले मुहल्ले उर्दू के विकास के लिए जागरूकता अभियान चलाएंगे । इसे अतीत में देश की आज़ादी में उर्दू भाषा और सहाफियों के कारनामों और उर्दू भाषा की मिठास ही कह सकते हैं जिससे संजय मिश्रा जी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । हमें संजय मिश्रा जी के इस संकल्प पर गर्व है जिन्होंने उर्दू भाषा के विकास के लिए चट्टानी और मज़बूत इरादों को ज़ाहिर किया है। जिस तरह उन्होंने तमाम कमियों को दूर और नज़र अंदाज़ करते हुए जश्न उर्दू सहाफत कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाया है और आगामी कार्यक्रम के आयोजन के प्रति अपने संकल्प का इज़हार किया है उनके ये कारनामे यकीनन सुनहरे हुर्फों में लिखे जाएंगे । हम जैसे उर्दू प्रेमियों को संजय मिश्रा जी पर फख्र है । हम उर्दू से संबंधित उनके आगामी कार्यक्रम के सफल आयोजन की कामना करते हैं और उर्दू प्रेमियों से अपील करते हैं कि उनके कार्यक्रम की सफलता के लिए उनके हाथों को मज़बूत करें और इसके लिए वो आगे आएं । इससे आने वाले दिनों में राज्य में उर्दू को इंसाफ मिलने का मार्ग प्रशस्त होने की उम्मीद की जा सकती है । हम अपना योगदान देने के लिए तैयार हैं। धन्यवाद
Regds,
नौशाद आलम
वरिष्ठ पत्रकार , रांची
9431602138
नोट : लेख में किसी भी गलती और कमी के लिए क्षमा चाहते हैं ।
इस लेख को अख़बार में भी जगह दे सकते हैं । पिक्चर भी साथ में है ।